रविवार, अक्टूबर 25, 2020

लगता है


लगता है,

ये आँखे बहुत कुछ सहती है,

 कोई राज हो जैसे दफ़न इनमें,

चीख चीख के ये कहती है |


जितना देखूं इनमे,

सागर सी गहराई नजर आती है,

पर क्या करूँ आखिर ?

आँखे इंसानी इनको नाप नहीं पाती |


रहने देता हूँ, निहारना इनको,

शायद सोच ये पराई है,

कई बार ऐसी ही उलझने सुलझाने से,

दरार रिश्तों में अक्सर पाई है |

बस अब और शब्द नहीं है,

बयां में अपने शब्द कर पाऊँ,

देख तेरी इन आँखों को,

इक नई उम्मीद से फिर जगमगा जाऊँ |


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