लगता है,
ये आँखे बहुत कुछ सहती है,
कोई राज हो जैसे दफ़न इनमें,
चीख चीख के ये कहती है |
जितना देखूं इनमे,
सागर सी गहराई नजर आती है,
पर क्या करूँ आखिर ?
आँखे इंसानी इनको नाप नहीं पाती |
रहने देता हूँ, निहारना इनको,
शायद सोच ये पराई है,
कई बार ऐसी ही उलझने सुलझाने से,
दरार रिश्तों में अक्सर पाई है |
बस अब और शब्द नहीं है,
बयां में अपने शब्द कर पाऊँ,
देख तेरी इन आँखों को,
इक नई उम्मीद से फिर जगमगा जाऊँ |
------------------------------------------------------

