अब्र बनकर बसर अश्क बरसा रहा है।
दिल का मुहाफिज ही आज दिल तोड़के जा रहा है।
बह रहा है लहू मेरे अरमानों का,
हर ख़्वाब अब्सार का टूटकर बिखरता जा रहा है।
आशुफ्ता हैं दिल की सारी ख्वाहिशें,
वो मेरी हर ख्वाहिश को मिटाके जा रहा है।
गम अंदोज हैं दिल से लेके रूह तक,
वो मेरी मोहब्बत की बस्ती को कुछ यूं जलाके जा रहा है।
रुख मोड़ लिया है सब खुशियों ने मुझसे,
वो सारे गमों से मेरा ताल्लुक जोड़के जा रहा है।
कभी कसमें खाता था वो सदा साथ निभाने की,
आज वो मेरी हयात की नाउ को मझधार में डुबोके जा रहा है।
न जाने कब से था उसके दिल में कोई मस्तूर,
आज वो उसी की बांहों में सिमटने जा रहा है।
मुझे करके बदनाम करके खुद तमाम अस्काम,
वो बेवज़ह मुझे मौत की सजा देके जा रहा है।