शनिवार, फ़रवरी 01, 2020

सुनहरा सा पल ....

हर रोज हमें मिलना , 
हर रोज बिछडना हैं ,
मैं रात की परछाई , 
तू सुबह का चेहरा है ,

आलम का यह सब नक्शा , 
बच्चों का घरोंदा हैं 
एक जर्र्रे के कब्जे में ,
 सहमी हुई हमारी  दुनिया हैं ,

तुम हमराह बनकर .
चलो मेरे साथ चलना  ,
 मेरे ये राह में तेरा साथ ,
दीवार के रोके से , 
दरिया कहीं रुकता हैं ?
तेरे ही इशारों पर यह रात मिली हमको ,
जिस चाँद के चेहरे का साया भी सुनहरा हैं ,



तेरे नाम की  एक गूंज भटकती हैं,
आज भी सुनसान पहाड़ों में ,
जब रात के सीने में,
 दिल मेरा धडकता हैं ,
कब जाने हवा उसको बिखरा दे फिजाओं में ,
खामोश दरखतों पर सहमा हुआ,
एक नगमा हो तुम ,

                      - मोहनकुमार उगले
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