हर रोज हमें मिलना ,
हर रोज बिछडना हैं ,
मैं रात की परछाई ,
तू सुबह का चेहरा है ,
आलम का यह सब नक्शा ,
आलम का यह सब नक्शा ,
बच्चों का घरोंदा हैं
एक जर्र्रे के कब्जे में ,
सहमी हुई हमारी दुनिया हैं ,
तुम हमराह बनकर .
चलो मेरे साथ चलना ,
मेरे ये राह में तेरा साथ ,
दीवार के रोके से ,
दरिया कहीं रुकता हैं ?
तेरे ही इशारों पर यह रात मिली हमको ,
तेरे नाम की एक गूंज भटकती हैं,
आज भी सुनसान पहाड़ों में ,
जब रात के सीने में,
दिल मेरा धडकता हैं ,
कब जाने हवा उसको बिखरा दे फिजाओं में ,
खामोश दरखतों पर सहमा हुआ,
एक नगमा हो तुम ,
- मोहनकुमार उगले
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