गुरुवार, सितंबर 28, 2023

चाहता हूं कुछ लिखूं


चाहता हूँ, कुछ लिखूँ, पर कुछ निकलता ही नहीं है

दोस्त, भीतर आपके कोई विकलता ही नहीं है!


आप बैठे हैं अंधेरे में लदे टूटे पलों से

बंद अपने में अकेले, दूर सारी हलचलों से

हैं जलाए जा रहे बिन तेल का दीपक निरन्तर

चिड़चिड़ाकर कह रहे- 'कम्बख़्त,जलता ही नहीं है!'


बदलियाँ घिरतीं, हवाएँ काँपती, रोता अंधेरा

लोग गिरते, टूटते हैं, खोजते फिरते बसेरा

किन्तु रह-रहकर सफ़र में, गीत गा पड़ता उजाला

यह कला का लोक, इसमें सूर्य ढलता ही नहीं है!


तब लिखेंगे आप जब भीतर कहीं जीवन बजेगा

दूसरों के सुख-दुखों से आपका होना सजेगा

टूट जाते एक साबुत रोशनी की खोज में जो

जानते हैं- ज़िन्दगी केवल सफ़लता ही नहीं है!


बात छोटी या बड़ी हो, आँच में खुद की जली हो

दूसरों जैसी नहीं, आकार में निज के ढली हो

है अदब का घर, सियासत का नहीं बाज़ार यह तो

झूठ का सिक्का चमाचम यहाँ चलता ही नहीं है!




रविवार, सितंबर 17, 2023

एक हकीकत का सपना





सपने मे अपनी मौत को करीब से देखा,
कफ़न में लिपटे तन जलते अपने शरीर को देखा...
 खड़े थे लोग हाथ बांधे एक कतार में,
कुछ थे परेशान कुछ उदास थे ।

पर कुछ छुपा रहे अपनी मुस्कान थे, 
दुर खड़ा देख रहा था मैं ये सारा मंजर ।
तभी किसी ने हाथ बढा कर मेरा हाथ थाम लिया । 
और जब देखा चेहरा उसका तो मैं बड़ा हैरान था ।
 हाथ थामने वाला और कोई नहीं, 
मेरा भगवान था... 
चेहरे पर मुस्कान और नंगे पाँव था ।

जब देखा मैंने उस की तरफ जिज्ञाशा भरी नज़रों से...
तो हँस कर बोला...
"तुने हर दिन दो घडी जपा मेरा नाम था
आज प्यारे उसका कर्ज़ चुकाने आया हूँ...
रो दिया मैं अपनी बेवकूफ़ीयो पर तब ये सोच कर,
 जिसको दो घडी जपा वो बचाने आया है, 

और जिन मे हर घडी रमा रहा
वो शमशान पहुचाने आये है...
तभी खुली आँख मेरी बिस्तर पर विराजमान था, 
कितना था नादान मैं हकीकत से अनजान था...


गुरुवार, सितंबर 07, 2023

क्या लिखूं तुम पर



  क्या लिखूं तुझ पर 
कुछ लफ्ज़ नहीं है। 
दूरी का अहसास लिखूं या 
बेइन्तिहाँ मोहब्बत की बात लिखूं। 

एक हसींन ख्याल लिखूं या
 तुमको अपनी जान लिखूं । 
तुम्हारा खूबसूरत ख्याल लिखूं या 
अपनी मोहब्बत का इज़हार लिखूं ॥ 

तूने ही मुझे लिखा , 
अपने प्यार की कलम से,
 ए मेरे प्यार बता तुझको मैं
किस तरह लिखूं।




बंधन


कहतें हैं.. बंधनों के कई रूप होते हैं... 
सात फेरों का बंधन, 
सात जन्मों का बंधन जन्मों जन्मों का बंधन...
पर एक बंधन और भी होता है.... 
मन से मन का बंधन...!!!

रेशम सा... बहतें नीर सा..
हवाओं मे बहता सा.. महकते इत्र सा..
 बांधे एक ही.. डोर से.. मन से मन को.... 
हर भीड़ मे तलाशती.. एक दूसरें को.. 
उस नाम को.. उसके लिखे शब्दों को... 
यही तो है.. मन से मन का बन्धन !!!

देखते सुनते... जाने कब..
 कैसे.. खुद की आत्मा ... मन.. 
और मौन... मिल से ज़ातें हैं...
 बंध से जाते हैं...और फिर... 
प्रेम हो जाता है.. बस हो जाता है...
एक दूसरें को...मन से मन को..
शायद इस बंधन मे... कोई अग्नि साक्षी नही.. 
हवन नही.. कोई सात वचन नही... 
पर सबसे निकट.. 

अलग है ये..!!!
न बांधने की चाहत..
 न छूटने का मन.. बस ऐसा है ये..
मन से मन का बंधन !!!



श्रीमंत डब्यातील गरीब माणसे.......

  श्रीमंत डब्यातील गरीब माणसे....... AC च्या डब्यातील भाजणारे वास्तव............ आयुष्यात पहिल्यांदा AC ने प्रवास केला. डब्यात सेवेसाठी नेमल...