शुक्रवार, फ़रवरी 14, 2020

आझादी

आज़ादी ! आज़ादी !आज़ादी !,
बस दिन रात रट लगा रखी है ‘आज़ादी ‘।
इस लफ्ज की गहराई जानते हो ?
आखिर क्या है यह आज़ादी ?
ऊंची सोच और विशाल ह्रदय ,
संयमित जीवन है ‘आज़ादी ‘।
तुम्हारी सोच में स्वार्थ की बू है ,
एक घटिया ज़िद है आज़ादी ।
अपने फर्ज़ तुम जानते भी हो ?
वतन से मांगते हो आज़ादी ।
वतन के लिए फर्ज़ की अनदेखी ,
मगर  चाहिए तुम्हें हक़-ए -आजादी ।
राष्ट्रीय संपत्ति की तोड़ -फोड़ ,आगजनी ,
दहशतगर्दी ,गुंडागर्दी के लिए आजादी ।
सरकार के खिलाफ खुलेआम नारेबाज़ी ,
ज़ुबान से जहर उगलने के लिए आजादी ।
तुम दे सकते हो प्रधानमंत्री जी तक को गाली ,
उन्हें खंजर चुभोने को चाहिए तुम्हें आजादी ।
वतन के संविधान ,सभ्यता और संस्कृति को ,
अपमानित और मिटाने की चाहिए आजादी ।
हमारे देश के दुश्मनों से मिलकर गहरी साजिशें ,
साफ तौर पर गद्दारी करने की चाहिए तुम्हें आजादी ।
अरे एहसान फरामोशों! इतने गुनाहो के बावजूद भी ,
सर उठाकर बेशर्मी से जीने की तुम्हें चाहिए आजादी ।
अगर इतने ही हो परेशान तो चले जाओ यहाँ से दूर ,
अपनी ओकात समझ मे आ जाएगी और समझ मे ,
आ जाएगा हर्फ -ए- आजादी ।
फिर हम भी देखेंगे ,कैसे और कौन देता है तुम्हें ,
अपने बे लगाम ख्यालों  के साथ ,
बे लगाम जीवन जीने की आज़ादी !!
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