शुक्रवार, मार्च 31, 2023

दुश्मन होता रण में

दुश्मन होता रण में
मैं बांध कफ़न लड़ लेता
होता कितना भी बलवान
आत्म बल उसको दफ़न कर देता।

लेकिन ये कैसा दुश्मन
जिसने सबको ललकारा है
भितरघाती कुटिल ये कितना
सर्प भांति फुफकारा है

हर वीर पराजित होता है
लेकिन रणभूमि का शौभाग्य नहीं
शूरवीर अंतिम साँसों तक लड़ता
लेकिन शहीद का मान नहीं।
हर शास्त्र शस्त्र निपुड़ है योद्धा
फिर भी कोई अनुमान नहीं।।

रण छोड़ चुकी है रणभूमि अब
घर को ही है युद्धभूमि का मान
लड़ निशस्त्र होकर अंधियारे से सब
मिलेगा योद्धाओं सा सम्मान

घर बैठे इस युद्ध को जीता जायेगा
जिंदा रह के भी तू अमर हो जायेगा
कर्मयुद्ध के धर्म का अर्जुन तू कहलायेगा
बिन हथियारों के अदृश्य युद्ध का प्रकाश पुंज बन जायेगा


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

श्रीमंत डब्यातील गरीब माणसे.......

  श्रीमंत डब्यातील गरीब माणसे....... AC च्या डब्यातील भाजणारे वास्तव............ आयुष्यात पहिल्यांदा AC ने प्रवास केला. डब्यात सेवेसाठी नेमल...