जब मेरे घर पर खुशियों का माहौल था ,
तब उसके घर दुःख] का सन्नाटा था ,
जब में ख़ुशी से हँस रहा था ,
तब वह दुःख से रो रही थी ,
जब में अपनी जिंदगी से जीत रहा था ,
तब वह खुद की जिंदगी से हार मान रही थी ,
जब में दुनिया के रंग में रंग रहा था ,
तब वह दुनिया के रंग से बेरंग हो रही थी ,
जब में अमीर हो रहा था ,
जब में आसमान की उडान उड़ रहा था ,
तब वह मिट्टी में पूरी मिल चुकी थी ,
जब में उसकी जिंदगी की और जा रहा था ,
तब वह खुद से बहोत दूर जा चुकी थी ,
जब में उसके लिए जीना चाहता था ,
तब वह किसी औरों के लिए जी रही थी ,
जब भी में उसके लिए कुछ करना चाहता था ,
तब वह हर वक्त खुदा ने उसके साथ ना इंसाफ किया ,
ये दुनिया बनाने वाले,
ऐसा क्या गुनाह किया था हमने ,
की तूने हमसे हमारा साया ही छिना ,
मुझे जिंदगी देने वाले ,
तूने मेरी जिंदगी मुझसे छीनली
जब मेरी जिंदगी छिनी ,
तब मेरी जिंदगी पर मेरा हक़ था |
जब वह मेरी जिंदगी मुझसे
दूर लेकर गया ,
तब उसका मेरी जिंदगी पर क्या हक़ था ?
- मोहनकुमार उगले
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