कोण हूँ में ? इंसान हूँ या जानवर ?
जानवर जैसा दिखता नहीं
इंसान जैसे दिखता हूँ
इंसानों में रहकर जानवर जैसे रहता हूँ
क्या हूँ में ? इंसान हूँ या पत्थर हूँ में ?
पत्थर जैसे दिखता नहीं ,
फिर भी पत्थर दिल हूँ में
कहाँ से आया हूँ में ?
इंसानों की बस्ती में पैदा हुआ हूँ ,
फिर भी इंसानों जैसा नहीं हूँ में ,
क्या कर रहा हूँ में ?
जी तो बचपन से रहा हूँ ,
किसी के लिए कुछ भी नहीं कर रहा ,
कैसा हूँ में ?
अच्छे लोगों के साथ रहकर भी बुरा हूँ में ,
प्यार करने वालों के साथ भी ,
बुरा करने वाला हूँ में |
क्या बनना हैं मुझे ?
फूलों में रहकर ,
कीचड़ से उभरा हुआ कमल बनना चाहता हूँ |
लोगों की ख़ुशी में नहीं ,
कीचड़ जैसे दुःख में साथ देना चाहता हूँ |
क्यों जी रहा हूँ ?
हर उस परेशानी का सामना करने के लिए ,
जिससे में हार गया |
हर उसके दिल में रहना चाहता हूँ ,
जो नफ़रत करते हैं दूसरों से |
- मोहनकुमार उगले

Achhi poem hai
जवाब देंहटाएंAchhi poem hai...
हटाएंLajawab
जवाब देंहटाएंI like❤❤❤
जवाब देंहटाएंBahot Badhiya
जवाब देंहटाएंAchha likha hai...
जवाब देंहटाएंthanks
हटाएंNice...sir
जवाब देंहटाएंChhan
जवाब देंहटाएंBaht Khub
जवाब देंहटाएंSach kaha sir ,
जवाब देंहटाएंMujhe bhi aise hi saval pad ate hair..
Mujhe bahot hi pas and aai...
I like it...
जवाब देंहटाएंYour poem is beautiful...
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