पढ़ सकता मैं कि, क्या क्या दुःख सहे हैं ?
तेरे मासूम सच्चे मन ने...
क्या पाऊँगा मैं और क्या दिल खोयेगा?
कब थोड़ी खुशी तुझे मिलेगी,
मासूम तेरे सच्चे मन को,
तेरे चेहरे की मुस्कुराहट छीननेवाले,
तेरे सच्चे मन को रुलानेवाले,
तेरी मासूम आंखों में आसूं लानेवाले,
तेरे पवित्र बदन को छूनेवाले,
उस दरिंदे के हाथ पैर काटकर,
मैं शायद उसे मार डाल सकता,
काश जिदंगी सचमुच किताब होती,
फाड़ सकता मैं उन लम्हों को
जिन्होने तूझे रुलाया है..
जोड़ता कुछ पन्ने जिनकी यादों ने तूझे हँसाया है...
हिसाब तो लगा पाता कितना खोया
और कितना पाया है?
काश जिदंगी सचमुच किताब होती,
वक्त से आँखें चुराकर पीछे चला जाता..
तेरे टूटे सपनों को फिर से अरमानों से सजाता ,
कुछ पल के लिये मैं तुझे मुस्कुराता,
काश, जिदंगी सचमुच किताब होती,
तेरी जिंदगी के वो काले पन्ने फाड़कर,
कुछ खुशियां तेरी जिंदगी में लिख देता,
शायद तेरी जिंदगी वो काला पन्ना
में फाड़ डाल सकता...
तेरी जिंदगी की किताब के,
काले पन्ने मैं फाड़कर,
कुछ नए ख्वाबों के , नई खुशी के ,
कुछ हसीन खूबसूरत लम्हों के,
कुछ नए पन्ने मैं लिख सकता...
मैं कुछ कर नहीं सकता क्योंकि,
जिंदगी किताब नही...
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