मंगलवार, जनवरी 28, 2020

मेरा बाप एक किसान ...


आज अभिमान से ही नहीं बल्कि ,
गर्व से कहता हूँ मेरा बाप एक किसान हैं ,
मैं एक किसान का बेटा हूँ ,

हाँ साहब , उसी किसान का बेटा हूँ मैं ,
जो दुनिया का पेट पालने के लिए 
जो कड़ी धुप में .
भरी बरसात मैं ,
कडकडाती ठण्ड में ,
अपनी काली मिट्टी को धरती माँ समझकर ,
दिन रात काम करता हैं ,
उसी बहादुर किसान का बेटा हूँ मैं ,

हाँ , उसी गरीब किसान का बेटा हूँ मैं ,
जो आज कुदरत की वजह से और
 आप की गलत नीतियों की वजह से ,
एक भिकारी बनकर फिर से ,
उसी कुदरत से लड़ने के लिए  जी रहा हैं ,
उसी किसान का बेटा हूँ मैं ,

उसी किसान का बेटा हूँ मैं साहब  जो ,
आप लोगों को पंचपकवान खिलानेवाला ,
अपने घर की रुखी सुखी रोटी खाके ,
आसमान की छत के निचे ,
अपनी धरती माँ की गोद में ,
ये सोचकर सोता हैं की ,
कल एक और नया सवेरा आएगा ,
कल एक और नई सुरुवात करूँगा ,
उसी किसान का बेटा हूँ में ,



किसान का बेटा हूँ मैं साहब ,
फिर भी अभिमान ही नहीं बल्कि गर्व हैं ,
मेरे किसान पिता पर क्योंकि ,
वह आज भी खेती करता हैं ,
ताकि दुनिया मैं कोई अनाज की वजह से ,
 भूका न रह सके 


                                           - मोहनकुमार उगले 
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खुद की हार

जग से नहीं खुद से हारा हूँ मैं ,
हर वक्त , हर दिन , हर जंग खुदसे हारता हूँ मैं ,
खुद की जंग खुद लाधने की सोचता हूँ ,
और जंग लड़ने से पहले ही मैं ,
खुद से ही हार जाता हूँ ,

हर वक्त , हर पल मैं खुद से हारता हूँ ,
खुद से हरा हुआ इंसान हूँ .
दुनिया से जितना नहीं बल्कि ,
दुनिया को जितना चाहता हूँ ,
जितने की कोशिस करने से पहले ही 
मैं खुद से हार जाता हूँ ,

मैं हर दम , हर वक्त ,
न जाने कोनसी उल्ज़नो में खोया रहता हूँ ?
हर जगह , भीड़ में  , अकेले में ,
गुमसुमसा , अकेलासा अपने ही ,
सपनों की दुनिया मैं रहता हूँ ,
जिस सपनों की नगरी मैं रहता हूँ ,
उसका नाम भी मालूम नहीं हैं ,

सोचता था कब अपनी सपनों की ,
दुनिया से बाहर आऊंगा ?
लेकिन अब लगता हैं जैसे ,
सपनों की दुनिया ही अच्छी हैं ,
उस दुनिया मैं अपने ,
ख्वाबों के साथ जो रहता था ,


कोई मिल गया हो ...




कल तक में देवदास जैसा घूमता फिरता था ,
जैसे कोई मेरी पारो मुझसे बिछड गई हो ,
और आज कोई फिरसे नई पारो मुझे मिल गई हो

कल तक ऐसा लगता था जैसे ,
मुझे मेरा अपना या पराया कहनेवाला भी कोई नहीं था ,
लेकिन आज कल दिल ही दिल में ऐसा लगाने लगा हैं जैसे ,
आज कोई अपना कहनेवाली दोस्त मिल गई हो ,



कल तक मेरा कोई भी दोस्त नहीं हुआ करता था ,
आज ऐसा लगाने लगा हैं जैसे ,
एक अनजानी सी दोस्त मिल गई हो ,

                                  - मोहनकुमार उगले 



जवाब

आज कल मैं हर पल , हर वक्त
एक अजीब सी तन्हाई में जी रहा हूँ ,

न जाने क्या हैं, मेरे दिल में ,
न जाने क्या चल रहा है, मेरे दिल में ,
न जाने क्या सोचता हूँ में ,
न जाने कोनसी राह पर चला जा रहा हूँ में ,

सबकुछ पाने के बाद भी में ,
कुछ पाने की कोशिस करता था ,
लेकिन आज सबकुछ खोने की कोशिस कर रहा हूँ

मुझसे मेरी जिंदगी ने आजतक क्या चाहा ?
मुझे आजतक मालूम नहीं है ,
मगर मुझसे लोगों ने क्या चाहा ,
ये मुझे जरुर मालूम हैं ,

अजीब से लोगों के साथ मैं  ,
अजीब सी जिंदगी में ,
अजीब से ख्वाबों के साथ ,
अजीब सी जिंदगी मैं
अजीब तरह से जी रहा हूँ ,

                            - मोहनकुमार उगले




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