जग से नहीं खुद से हारा हूँ मैं ,
हर वक्त , हर दिन , हर जंग खुदसे हारता हूँ मैं ,
खुद की जंग खुद लाधने की सोचता हूँ ,
और जंग लड़ने से पहले ही मैं ,
खुद से ही हार जाता हूँ ,
हर वक्त , हर पल मैं खुद से हारता हूँ ,
खुद से हरा हुआ इंसान हूँ .
दुनिया से जितना नहीं बल्कि ,
दुनिया को जितना चाहता हूँ ,
जितने की कोशिस करने से पहले ही
मैं खुद से हार जाता हूँ ,
मैं हर दम , हर वक्त ,
न जाने कोनसी उल्ज़नो में खोया रहता हूँ ?
हर जगह , भीड़ में , अकेले में ,
गुमसुमसा , अकेलासा अपने ही ,
सपनों की दुनिया मैं रहता हूँ ,
सपनों की दुनिया मैं रहता हूँ ,
जिस सपनों की नगरी मैं रहता हूँ ,
उसका नाम भी मालूम नहीं हैं ,
सोचता था कब अपनी सपनों की ,
दुनिया से बाहर आऊंगा ?
लेकिन अब लगता हैं जैसे ,
सपनों की दुनिया ही अच्छी हैं ,
उस दुनिया मैं अपने ,
ख्वाबों के साथ जो रहता था ,
ख्वाबों के साथ जो रहता था ,
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