मंगलवार, जनवरी 28, 2020

खुद की हार

जग से नहीं खुद से हारा हूँ मैं ,
हर वक्त , हर दिन , हर जंग खुदसे हारता हूँ मैं ,
खुद की जंग खुद लाधने की सोचता हूँ ,
और जंग लड़ने से पहले ही मैं ,
खुद से ही हार जाता हूँ ,

हर वक्त , हर पल मैं खुद से हारता हूँ ,
खुद से हरा हुआ इंसान हूँ .
दुनिया से जितना नहीं बल्कि ,
दुनिया को जितना चाहता हूँ ,
जितने की कोशिस करने से पहले ही 
मैं खुद से हार जाता हूँ ,

मैं हर दम , हर वक्त ,
न जाने कोनसी उल्ज़नो में खोया रहता हूँ ?
हर जगह , भीड़ में  , अकेले में ,
गुमसुमसा , अकेलासा अपने ही ,
सपनों की दुनिया मैं रहता हूँ ,
जिस सपनों की नगरी मैं रहता हूँ ,
उसका नाम भी मालूम नहीं हैं ,

सोचता था कब अपनी सपनों की ,
दुनिया से बाहर आऊंगा ?
लेकिन अब लगता हैं जैसे ,
सपनों की दुनिया ही अच्छी हैं ,
उस दुनिया मैं अपने ,
ख्वाबों के साथ जो रहता था ,


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

श्रीमंत डब्यातील गरीब माणसे.......

  श्रीमंत डब्यातील गरीब माणसे....... AC च्या डब्यातील भाजणारे वास्तव............ आयुष्यात पहिल्यांदा AC ने प्रवास केला. डब्यात सेवेसाठी नेमल...