मंगलवार, फ़रवरी 11, 2020

वो सुबह कभी तोह आएगी



वो  सुबह  कभी  तोह  आएगी ,
इन  काली  सदियों  के  सर  से ,
 जब  रात  का  आँचल  ढकलेगा ,
जब  दुःख  के  बादल  पिघलेंगे ,  
जब  सुख  का  सागर  छलकेगा ,
जब  अम्बर  झूम  के  नाचेगा , 
 जब  धरती  नगमे  गायेगी ,
वो  सुबह  कभी  तोह  आएगी ,

जिस  सुबह  के  खातिर  युग  युग  से ,
 हम  सब  मर  मर  के  जीते  हैं ,
जिस  सुबह  के  अनृत  धुन  में ,
  हम  जहर  के  प्याले  पीते  है ,
इन  भूकी  प्यासी  रूहों  पर ,
  इक  दिन  तो  करम  फर्मायेगी ,
वो  सुबह  कभी  तो  आएगी ,

माना  की  तेरे  मेरी  आरामानों  की  कीमत  कुछ  भी  नहीं ,
मिट्टी  का  भी  है  कुछ  मोल  मगर ,  
इंसानों  की  कीमत  कुछ  भी  नहीं ,
इंसानों  की  इज्जत  जब  झूठे  सिक्कों  में  न  तोली  जाएगी ,
वो  सुबह  कभी  तोह  आएगी ,


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