सोमवार, दिसंबर 11, 2023

अब लड़ो

क्षत्रियों कब तक टायर जलाते रहोगे...
आखिर घर में पड़ी पुरखो की अमानते,
निम्बू के रस से कब तक मांझोगे... 

क्षत्रियों उठो और निकलौ रोडो पर... 
अपने शस्त्र लेकर... 
अपनी स्वाभिमान के लिए लड़ो...
अपने इतिहास के लिए लड़ो...

अपने जिंदा होने का 
सबूत देनें के लिए लड़ो... 
लड़ो..
 अब नियति तुम्है मोके नहीं देगी... 
इसलिए अब अपनी नियति से लड़ो....
और उस भवानी के नाम की
चिटक जगाकर अपनी चन्द्रहास खड़बड़ाओ...।

सोमवार, दिसंबर 04, 2023

शायद तेरी जिंदगी का वो काला पन्ना में फाड़ डाल सकता


काश, तेरी जिदंगी सचमुच किताब होती,
पढ़ सकता मैं कि, क्या क्या दुःख सहे हैं ?
तेरे मासूम सच्चे मन ने...

क्या पाऊँगा मैं और क्या दिल खोयेगा?
 कब थोड़ी खुशी तुझे मिलेगी, 
मासूम तेरे सच्चे मन को,

तेरे चेहरे की मुस्कुराहट छीननेवाले,
तेरे सच्चे मन को रुलानेवाले,
तेरी मासूम आंखों में आसूं लानेवाले,
तेरे पवित्र बदन को छूनेवाले,
उस दरिंदे के हाथ पैर काटकर,
मैं शायद उसे मार डाल सकता,

काश जिदंगी सचमुच किताब होती, 
फाड़ सकता मैं उन लम्हों को
जिन्होने तूझे रुलाया है.. 

जोड़ता कुछ पन्ने जिनकी यादों ने तूझे हँसाया है...
 हिसाब तो लगा पाता कितना खोया 
और कितना पाया है? 

काश जिदंगी सचमुच किताब होती, 
वक्त से आँखें चुराकर पीछे चला जाता.. 
तेरे टूटे सपनों को फिर से अरमानों से सजाता ,
कुछ पल के लिये मैं तुझे मुस्कुराता,

काश, जिदंगी सचमुच किताब होती,
तेरी जिंदगी के वो काले पन्ने फाड़कर,
कुछ खुशियां तेरी जिंदगी में लिख देता,
शायद तेरी जिंदगी वो काला पन्ना
 में फाड़ डाल सकता...

तेरी जिंदगी की किताब के,
काले पन्ने मैं फाड़कर,
कुछ नए ख्वाबों के , नई खुशी के ,
कुछ हसीन खूबसूरत लम्हों के,
कुछ नए पन्ने मैं लिख सकता...

मैं कुछ कर नहीं सकता क्योंकि,
जिंदगी किताब नही...




मंगलवार, नवंबर 14, 2023

अच्छा लगता है



ख़ामोशी ओढ़, 
बातें तेरी करना, 
अच्छा लगता है, 
चांदनी रात, यादों की बारिश, 
तारें गिनना अच्छा लगता हैं....

 सोई रातें, जागी बातें, 
गुपचुप गुपचुप बतियाती धडकने,
 तेरे इश्क़ में यूं घुलमिल जाना, 
अच्छा लगता हैं....

तुम्हे लगते फासले कई,
 हम लगता सदियों से संग यूं ही, 
तू हमसाया तो जीवन सफ़र, सुहाना लगता है.....

तुझे जो कहते मुझ से इश्क़ नहीं, 
फिर क्यूं मानते बातें मेरी, 
इस में हम पे तेरा हक जतलाना 
अच्छा लगता है......

मेरे चेहरे पे छाई रौनक तेरी, 
तेरी बेरुखी फिर भी मेरी दिवानगी, 
और चुपके चुपके तुम्हे देख आना, 
अच्छा लगता है.....



रविवार, नवंबर 05, 2023

मैं बेनाम सा शख्स हूं

मैं, आग सा गीला हूं,
 बरसात सा सूखा हूं,
 दिन का अंधेरा हूं, 
रात का सवेरा हूं, 
पतजर का पानी हूं,
 दरियां सा खाली हूं,
 काला सा उजाला हूं,
 उतरा सा सितारा हूँ, 
ख्वाबों सा सच हूं, 
अधूरा एक लफ़्ज़ हूं, 
मैं, बेनाम एक शख्स हूं...!



शनिवार, नवंबर 04, 2023

आरजू


रक्त की स्याही से, 
हम मोहब्बत का पैगाम लिखते हैं।
दिल की धड़कनों की संगीत, 
तेरे नाम लिखते हैं।।

तूंम मेरे रूह की गहराइयों में 
हर पल रहती हो।
खुदा से तेरी सलामती का
 हम पयाम लिखते हैं।।

तेरी उल्फत की आरज़ू,
 हम सुबह -शाम करते हैं।
तेरी दीदार की जुस्तजू, 
हम सरेआम करते हैं।।

मेरे महबूब की सलामती का, 
हम इंतजाम करते हैं।
तेरी चाहत में अपनी जिंदगी,
 हम नीलाम करते हैं।।

तुम ही हो रीढ़ बन इतिहास में



युग-काल से 
मेरे भावना-विश्वास में।
तुम नारी खड़ी है रीढ़ बन
इतिहास में।

 सोचो और देखो
 हृदय के पास में।
 सृजन और स्नेह के
सुवास में।

मानवीय भावना के
भास में।
करुणा ही बसती है
जिनकी साँस में।

वीरता के भी
अडिग विश्वास में।
नारी खड़ी है
 रीढ़ बनकर इतिहास में।

सीता-सावित्री
अनुसूया-अरून्धति।
गंधारी-गार्गी
मैत्री या पद्मिनी।
मीराबाई, दुर्गावती
झाँसी की रानी।
कस्तूरबा-इंदिरा
सुभद्रा-सरोजिनी।

 इनसे होती रोशनी
 आकाश में।
 नारी खड़ी है,
 रीढ़ बनकर  इतिहास में।




रविवार, अक्टूबर 08, 2023

कोई खास नहीं


कोई तुमसे पूछे
कौन हूँ मैं? तुम कह देना
कोई खास नहीं.....

 एक दोस्त है
पक्का कच्चा सा,
एक झूठ है
आधा सच्चा सा,

जज़्बात से ढका
एक पर्दा है, एक बहाना
कोई अच्छा सा !

जीवन का ऐसा
साथी है जो,
पास होकर भी
पास नहीं!

कोई तुमसे पूछे
कौन हूँ मैं?
तुम कह देना
कोई खास नहीं ...

एक साथी जो
अनकही सी,
कुछ बातें
कह जाता है।

यादों में जिसका
धुंधला सा.
एक चेहरा ही
रह जाता है।

यूं तो उसके
ना होने का,
मुझको कोई
गम नहीं,

पर कभी-कभी
वो आँखों से,
आंसू बनके
बह जाता है।

यूं रहता तो
मेरे ज़हन में है,
पर नज़रों को
उसकी तलाश नहीं,

कोई तुमसे पूछे
कौन हूँ मैं?
तुम कह देना
कोई खास नहीं...
साथ बनकर
जो रहता है,

वो दर्द बाँटता जाता है,
भूलना तो चाहूँ,
उसको पर वो यादों में छा जाता है।

अकेला महसूस
करूँ कभी जो,
सपनो में आ जाता है।
मैं साथ खड़ा हूँ
सदा तुम्हारे,
कहकर साहस
दे जाता है!

ऐसे ही रहता है
साथ मेरे की,
उसकी मौजूदगी का आभास नहीं!

कोई तुमसे पूछे
कौन हूँ मैं,
तुम कह देना
कोई खास नहीं.....




गुरुवार, सितंबर 28, 2023

चाहता हूं कुछ लिखूं


चाहता हूँ, कुछ लिखूँ, पर कुछ निकलता ही नहीं है

दोस्त, भीतर आपके कोई विकलता ही नहीं है!


आप बैठे हैं अंधेरे में लदे टूटे पलों से

बंद अपने में अकेले, दूर सारी हलचलों से

हैं जलाए जा रहे बिन तेल का दीपक निरन्तर

चिड़चिड़ाकर कह रहे- 'कम्बख़्त,जलता ही नहीं है!'


बदलियाँ घिरतीं, हवाएँ काँपती, रोता अंधेरा

लोग गिरते, टूटते हैं, खोजते फिरते बसेरा

किन्तु रह-रहकर सफ़र में, गीत गा पड़ता उजाला

यह कला का लोक, इसमें सूर्य ढलता ही नहीं है!


तब लिखेंगे आप जब भीतर कहीं जीवन बजेगा

दूसरों के सुख-दुखों से आपका होना सजेगा

टूट जाते एक साबुत रोशनी की खोज में जो

जानते हैं- ज़िन्दगी केवल सफ़लता ही नहीं है!


बात छोटी या बड़ी हो, आँच में खुद की जली हो

दूसरों जैसी नहीं, आकार में निज के ढली हो

है अदब का घर, सियासत का नहीं बाज़ार यह तो

झूठ का सिक्का चमाचम यहाँ चलता ही नहीं है!




रविवार, सितंबर 17, 2023

एक हकीकत का सपना





सपने मे अपनी मौत को करीब से देखा,
कफ़न में लिपटे तन जलते अपने शरीर को देखा...
 खड़े थे लोग हाथ बांधे एक कतार में,
कुछ थे परेशान कुछ उदास थे ।

पर कुछ छुपा रहे अपनी मुस्कान थे, 
दुर खड़ा देख रहा था मैं ये सारा मंजर ।
तभी किसी ने हाथ बढा कर मेरा हाथ थाम लिया । 
और जब देखा चेहरा उसका तो मैं बड़ा हैरान था ।
 हाथ थामने वाला और कोई नहीं, 
मेरा भगवान था... 
चेहरे पर मुस्कान और नंगे पाँव था ।

जब देखा मैंने उस की तरफ जिज्ञाशा भरी नज़रों से...
तो हँस कर बोला...
"तुने हर दिन दो घडी जपा मेरा नाम था
आज प्यारे उसका कर्ज़ चुकाने आया हूँ...
रो दिया मैं अपनी बेवकूफ़ीयो पर तब ये सोच कर,
 जिसको दो घडी जपा वो बचाने आया है, 

और जिन मे हर घडी रमा रहा
वो शमशान पहुचाने आये है...
तभी खुली आँख मेरी बिस्तर पर विराजमान था, 
कितना था नादान मैं हकीकत से अनजान था...


गुरुवार, सितंबर 07, 2023

क्या लिखूं तुम पर



  क्या लिखूं तुझ पर 
कुछ लफ्ज़ नहीं है। 
दूरी का अहसास लिखूं या 
बेइन्तिहाँ मोहब्बत की बात लिखूं। 

एक हसींन ख्याल लिखूं या
 तुमको अपनी जान लिखूं । 
तुम्हारा खूबसूरत ख्याल लिखूं या 
अपनी मोहब्बत का इज़हार लिखूं ॥ 

तूने ही मुझे लिखा , 
अपने प्यार की कलम से,
 ए मेरे प्यार बता तुझको मैं
किस तरह लिखूं।




बंधन


कहतें हैं.. बंधनों के कई रूप होते हैं... 
सात फेरों का बंधन, 
सात जन्मों का बंधन जन्मों जन्मों का बंधन...
पर एक बंधन और भी होता है.... 
मन से मन का बंधन...!!!

रेशम सा... बहतें नीर सा..
हवाओं मे बहता सा.. महकते इत्र सा..
 बांधे एक ही.. डोर से.. मन से मन को.... 
हर भीड़ मे तलाशती.. एक दूसरें को.. 
उस नाम को.. उसके लिखे शब्दों को... 
यही तो है.. मन से मन का बन्धन !!!

देखते सुनते... जाने कब..
 कैसे.. खुद की आत्मा ... मन.. 
और मौन... मिल से ज़ातें हैं...
 बंध से जाते हैं...और फिर... 
प्रेम हो जाता है.. बस हो जाता है...
एक दूसरें को...मन से मन को..
शायद इस बंधन मे... कोई अग्नि साक्षी नही.. 
हवन नही.. कोई सात वचन नही... 
पर सबसे निकट.. 

अलग है ये..!!!
न बांधने की चाहत..
 न छूटने का मन.. बस ऐसा है ये..
मन से मन का बंधन !!!



गुरुवार, जून 29, 2023

मराठी मुलगी

कॉलेजमध्ये अनेक Modern मुलीं आहेत,
पण जी गोड लाजते,
ती मराठी मुलगी असते...

कॉलेजमध्ये मुलीं short top घालतात,
पण जी पाठ दिसू नये म्हणून top खाली ओढते,
ती मराठी मुलगी असते...

कॉलेजमध्ये मुलीं jeans घालतात,
पण जी jeans बरोबर पैंजण घालते,
ती मराठी मुलगी असते...

कॉलेजमध्ये अनेक attitude वाल्या मुलीं असतात,
पण स्वतः नोट्स सहज दुसऱ्याला देते,
ती मराठी मुलगी असते...

कॉलेजमध्ये अनेक मुलीं असतात,
पण वात्रटपणा केल्यावर जी कानाखाली  वाजवते,
ती मराठी मुलगी असते...

शॉपिंगला अनेक मुलीं जातात पण
खर्चाचा विचार करून फक्त कानातलं घेवून येते,
ती मराठी मुलगी...


 

बुधवार, जून 28, 2023

जिंदगी देने वाले



जिंदगी देने वाले, मरता छोड़ गये,
 अपनापन जताने वाले तन्हा छोड़ गये,
 जब पड़ी जरूरत हमें अपने हमसफर की, 
वो जो साथ चलने वाले, रास्ता मोड़ गये....

गुनाह करके सज़ा से डरते हैं, 
जहर पी के दवा से डरते हैं, 
दुश्मनों के सितम का खौफ नहीं, 
हम तो दोस्तों की वफ़ा से डरते हैं।

कोई अच्छी सी सज़ा दो मुझको, 
चलो ऐसा करो भूला दो मुझको,
 तुमसे बिछडु तो मौत आ जाये,
दिल की गहराई से ऐसी दुआ दो मुझको...


ना पूछ मेरे सब्र की इंतेहा कहाँ तक हैं, 
तू सितम कर ले, 
तेरी हसरत जहाँ तक हैं,
 वफ़ा की उम्मीद, 
जिन्हें होगी उन्हें होगी, 
हमें तो देखना है, तू बेवफ़ा कहाँ तक हैं।

 जिनकी आंखें आंसू से नम नहीं,
 क्या समझते हो उसे कोई गम नहीं,
 तुम तड़प कर रो दिये तो क्या हुआ,
 गम छुपा के हंसने वाले भी कम नहीं ||




कोई फरियाद तेरे दिल में दबी हो जैसे

कोई फ़रियाद तेरे दिल में दबी हो जैसे 

तू ने आँखों से कोई बात कही हो जैसे 

जागते जागते इक उम्र कटी हो जैसे 

जान बाक़ी है मगर साँस रुकी हो जैसे 

हर मुलाक़ात पे महसूस यही होता है 

मुझ से कुछ तेरी नज़र पूछ रही हो जैसे 

राह चलते हुए अक्सर ये गुमाँ होता है 

वो नज़र छुप के मुझे देख रही हो जैसे 

एक लम्हे में सिमट आया है सदियों का सफ़र 

ज़िंदगी तेज़ बहुत तेज़ चली हो जैसे 

इस तरह पहरों तुझे सोचता रहता हूँ मैं 

मेरी हर साँस तिरे नाम लिखी हो जैसे



शनिवार, जून 17, 2023

कहानी मुमताज की

सफेद कुर्ते में अभिनेता दिलीप कुमार ताजमहल से निकलते हैं। उनके पीछे अभिनेत्री वैजयंती माला आसमानी सूट में दौड़ती हुई आती हैं और रफी साहब की आवाज में गाना बजता है…

‘एक शहंशाह ने बनवा के हंसी ताजमहल, सारी दुनिया को मोहब्बत की निशानी दी है।
इसके साये में सदा प्यार के चर्चे होंगे, खत्म ना हो सके, ऐसी कहानी दी है।’

इस शहंशाह का नाम शाहजहां है और उनकी मोहब्बत का नाम है - अर्जुमंद बानो बेगम। दुनिया उन्हें मुमताज के नाम से जानती है। 17 जून 1631 यानी आज ही के दिन मुमताज की मौत हुई थी। उस वक्त वो महज 38 साल की थीं और उसी दिन उन्होंने अपने 14वें बच्चे को जन्म दिया था।

दिल्ली के मीना बाजार में प्यार होने से, जंग में शाहजहां के साथ जाने और मौत के बाद तीन बार दफनाए जाने तक, आज मुमताज बेगम की पूरी कहानी जानेंगे...

मीना बाजार का हीरा, जो बेशकीमती हो गया

अकबर के बेटे जहांगीर के घर 1592 में एक बेटा पैदा हुआ। नाम रखा गया खुर्रम (जिन्हें शाहजहां के नाम से जाना गया)। राजशाही ठाठ में बड़े हो रहे खुर्रम शायरी और संगीत के शौकीन थे। तब चलन था कि सालाना नए साल की खुशी में मीना बाजार सजेगा और उसकी आमदनी गरीबों में बांटी जाएगी।

साल 1607 के नए साल पर बाजार सजा। दुकानें लगीं और औरतें रेशम और कांच की मोतियों, जेवर, मसाले बेचने बैठीं। मीना बाजार में औरतें बेनकाब बैठी थीं, इसलिए मर्दों के आने की मनाही थी। सिर्फ शहंशाह जहांगीर और शहजादे खुर्रम ही वहां जा सकते थे।

मीना बाजार में घूमते हुए शहजादे खुर्रम ने देखा कि एक लड़की कीमती पत्थरों और रेशम के कपड़ों की दुकान सजा कर बैठी है। कपड़ों में तह लगाने का तौर देखकर शहजादे खुर्रम उसे दिल दे बैठे।
मुमताज महल की चर्चित पेंटिग्स में से एक। इसे 1830 में एक भारतीय पेंटर ने अंग्रेजों के लिए बनाया था।

14वें बच्चे को जन्म देते आज ही के दिन मौत:तीसरी बार ताजमहल में दफनाई गईं, कहानी मुमताज की



सफेद कुर्ते में अभिनेता दिलीप कुमार ताजमहल से निकलते हैं। उनके पीछे अभिनेत्री वैजयंती माला आसमानी सूट में दौड़ती हुई आती हैं और रफी साहब की आवाज में गाना बजता है…


‘एक शहंशाह ने बनवा के हंसी ताजमहल, सारी दुनिया को मोहब्बत की निशानी दी है।
इसके साये में सदा प्यार के चर्चे होंगे, खत्म ना हो सके, ऐसी कहानी दी है।’

इस शहंशाह का नाम शाहजहां है और उनकी मोहब्बत का नाम है - अर्जुमंद बानो बेगम। दुनिया उन्हें मुमताज के नाम से जानती है। 17 जून 1631 यानी आज ही के दिन मुमताज की मौत हुई थी। उस वक्त वो महज 38 साल की थीं और उसी दिन उन्होंने अपने 14वें बच्चे को जन्म दिया था।

दिल्ली के मीना बाजार में प्यार होने से, जंग में शाहजहां के साथ जाने और मौत के बाद तीन बार दफनाए जाने तक, आज मुमताज बेगम की पूरी कहानी जानेंगे...

मीना बाजार का हीरा, जो बेशकीमती हो गया

अकबर के बेटे जहांगीर के घर 1592 में एक बेटा पैदा हुआ। नाम रखा गया खुर्रम (जिन्हें शाहजहां के नाम से जाना गया)। राजशाही ठाठ में बड़े हो रहे खुर्रम शायरी और संगीत के शौकीन थे। तब चलन था कि सालाना नए साल की खुशी में मीना बाजार सजेगा और उसकी आमदनी गरीबों में बांटी जाएगी।

साल 1607 के नए साल पर बाजार सजा। दुकानें लगीं और औरतें रेशम और कांच की मोतियों, जेवर, मसाले बेचने बैठीं। मीना बाजार में औरतें बेनकाब बैठी थीं, इसलिए मर्दों के आने की मनाही थी। सिर्फ शहंशाह जहांगीर और शहजादे खुर्रम ही वहां जा सकते थे।

मीना बाजार में घूमते हुए शहजादे खुर्रम ने देखा कि एक लड़की कीमती पत्थरों और रेशम के कपड़ों की दुकान सजा कर बैठी है। कपड़ों में तह लगाने का तौर देखकर शहजादे खुर्रम उसे दिल दे बैठे।

मुमताज महल की चर्चित पेंटिग्स में से एक। इसे 1830 में एक भारतीय पेंटर ने अंग्रेजों के लिए बनाया था। -
मुमताज महल की चर्चित पेंटिग्स में से एक। इसे 1830 में एक भारतीय पेंटर ने अंग्रेजों के लिए बनाया था।
कैरोलीन अर्नोल्ड और मेडेलीन कोमुरा ने अपनी किताब 'ताजमहल' में इस घटना का जिक्र किया है। शहजादे खुर्रम ने लड़की की दुकान के पास जाकर एक हीरा उठाया और कहा, ‘इस पत्थर की क्या कीमत है?’

लड़की ने झल्ला कर कहा, ‘ये हीरा आपको पत्थर नजर आता है? पूरे 10 हजार का है।’

शहजादे खुर्रम ने जवाब में कहा, ‘इस पर आपका हाथ लग गया है इसलिए ये बेशकीमती हो गया है। अगली मुलाकात तक मैं इसे दिल के पास रखूंगा।‘
मीना बाजार में मुमताज से हीरे के लिए मोलभाव करते शाहजहां

लड़की का नाम था अर्जुमंद बानू बेगम जो बाद में मुमताज महल कहीं गईं। शहजादे खुर्रम ने महल आकर ऐलान किया कि उन्हें इस लड़की से निकाह करना है। पिता जहांगीर ने पता लगाने को कहा। तफ्तीश के बाद मालूम हुआ कि अर्जुमंद बानू तो उनके वकील आसफ खां की बेटी है। इस वक्त मुमताज 14 साल की थीं।

नूरजहां और जहांगीर की एक पेटिंग। मुमताज का परिवार ईरान से भारत आया था। मुमताज के दादा ग्यास्बेग ईरान से अपनी बेगम और तीन बच्चों के साथ आए। उन्हें यहां अकबर के दरबार में नौकरी मिल गई। बाद में मुमताज के पिता असफ खान जहांगीर के वकील बने और बुआ नूरजहां ने जहांगीर से विवाह किया। बाद में असफ खान, शाहजहां के वजीर भी बने।

मुमताज के अलावा भी शाहजहां ने की दो और शादियां

शाहजहां से मिलने के बाद मुमताज का निकाह होने में पांच साल लग गए। जहांगीर ने सगाई तो 1607 में ही करा दी मगर दरबारी ज्योतिषियों ने शुभ मुहूर्त के लिए पांच साल इंतजार करने के लिए कहा।

इस बीच 1610 में शहजादी कंधारी के साथ शाहजहां की शादी हुई। 1612 में मुमताज से शादी के बाद 1617 में भी शाहजहां की एक और शादी हुई थी। हालांकि दरबार के इतिहासकारों ने इसको राजनीतिक गठबंधन बताया।

दरबार के इतिहासकार इनायत खान ने जब शाहजहांनामा लिखी तो उसमें कहा, ‘दूसरी महिलाओं के लिए शाहजहां ने जो प्रेम दिखाया वो मुमताज के लिए उनके प्यार का एक हजारवां हिस्सा भी नहीं था।’

मुमताज से शादी और शाहजहां की खुशी

शाहजहां और मुमताज की शादी 1612 में हुई। मोइन उल आसार में इस शादी का जिक्र करते हुए लिखा गया है कि जहांगीर ने अपने हाथों से दूल्हे के सेहरे पर मोतियों का हार बांधा और पांच लाख मेहर की रकम तय की। शादी के वक्त मुमताज की उम्र 19 साल थी और शाहजहां की उम्र 20 साल।
शाहजहां और मुमताज की पेटिंग 14वें बच्चे को जन्म देते आज ही के दिन मौत:तीसरी बार ताजमहल में दफनाई गईं, कहानी मुमताज की
सफेद कुर्ते में अभिनेता दिलीप कुमार ताजमहल से निकलते हैं। उनके पीछे अभिनेत्री वैजयंती माला आसमानी सूट में दौड़ती हुई आती हैं और रफी साहब की आवाज में गाना बजता है…

‘एक शहंशाह ने बनवा के हंसी ताजमहल, सारी दुनिया को मोहब्बत की निशानी दी है।
इसके साये में सदा प्यार के चर्चे होंगे, खत्म ना हो सके, ऐसी कहानी दी है।’

इस शहंशाह का नाम शाहजहां है और उनकी मोहब्बत का नाम है - अर्जुमंद बानो बेगम। दुनिया उन्हें मुमताज के नाम से जानती है। 17 जून 1631 यानी आज ही के दिन मुमताज की मौत हुई थी। उस वक्त वो महज 38 साल की थीं और उसी दिन उन्होंने अपने 14वें बच्चे को जन्म दिया था।

दिल्ली के मीना बाजार में प्यार होने से, जंग में शाहजहां के साथ जाने और मौत के बाद तीन बार दफनाए जाने तक, आज मुमताज बेगम की पूरी कहानी जानेंगे...

मीना बाजार का हीरा, जो बेशकीमती हो गया

अकबर के बेटे जहांगीर के घर 1592 में एक बेटा पैदा हुआ। नाम रखा गया खुर्रम (जिन्हें शाहजहां के नाम से जाना गया)। राजशाही ठाठ में बड़े हो रहे खुर्रम शायरी और संगीत के शौकीन थे। तब चलन था कि सालाना नए साल की खुशी में मीना बाजार सजेगा और उसकी आमदनी गरीबों में बांटी जाएगी।

साल 1607 के नए साल पर बाजार सजा। दुकानें लगीं और औरतें रेशम और कांच की मोतियों, जेवर, मसाले बेचने बैठीं। मीना बाजार में औरतें बेनकाब बैठी थीं, इसलिए मर्दों के आने की मनाही थी। सिर्फ शहंशाह जहांगीर और शहजादे खुर्रम ही वहां जा सकते थे।

मीना बाजार में घूमते हुए शहजादे खुर्रम ने देखा कि एक लड़की कीमती पत्थरों और रेशम के कपड़ों की दुकान सजा कर बैठी है। कपड़ों में तह लगाने का तौर देखकर शहजादे खुर्रम उसे दिल दे बैठे।

मुमताज महल की चर्चित पेंटिग्स में से एक। इसे 1830 में एक भारतीय पेंटर ने अंग्रेजों के लिए बनाया था। - Dainik Bhaskar
मुमताज महल की चर्चित पेंटिग्स में से एक। इसे 1830 में एक भारतीय पेंटर ने अंग्रेजों के लिए बनाया था।

कैरोलीन अर्नोल्ड और मेडेलीन कोमुरा ने अपनी किताब 'ताजमहल' में इस घटना का जिक्र किया है। शहजादे खुर्रम ने लड़की की दुकान के पास जाकर एक हीरा उठाया और कहा, ‘इस पत्थर की क्या कीमत है?’

लड़की ने झल्ला कर कहा, ‘ये हीरा आपको पत्थर नजर आता है? पूरे 10 हजार का है।’

शहजादे खुर्रम ने जवाब में कहा, ‘इस पर आपका हाथ लग गया है इसलिए ये बेशकीमती हो गया है। अगली मुलाकात तक मैं इसे दिल के पास रखूंगा।‘

मीना बाजार में मुमताज से हीरे के लिए मोलभाव करते शाहजहां। स्केच- गौतम चक्रवर्ती - Dainik Bhaskar
मीना बाजार में मुमताज से हीरे के लिए मोलभाव करते शाहजहां। स्केच- गौतम चक्रवर्ती

लड़की का नाम था अर्जुमंद बानू बेगम जो बाद में मुमताज महल कहीं गईं। शहजादे खुर्रम ने महल आकर ऐलान किया कि उन्हें इस लड़की से निकाह करना है। पिता जहांगीर ने पता लगाने को कहा। तफ्तीश के बाद मालूम हुआ कि अर्जुमंद बानू तो उनके वकील आसफ खां की बेटी है। इस वक्त मुमताज 14 साल की थीं।

नूरजहां और जहांगीर की एक पेटिंग। मुमताज का परिवार ईरान से भारत आया था। मुमताज के दादा ग्यास्बेग ईरान से अपनी बेगम और तीन बच्चों के साथ आए। उन्हें यहां अकबर के दरबार में नौकरी मिल गई। बाद में मुमताज के पिता असफ खान जहांगीर के वकील बने और बुआ नूरजहां ने जहांगीर से विवाह किया। बाद में असफ खान, शाहजहां के वजीर भी बने। - Dainik Bhaskar
नूरजहां और जहांगीर की एक पेटिंग। मुमताज का परिवार ईरान से भारत आया था। मुमताज के दादा ग्यास्बेग ईरान से अपनी बेगम और तीन बच्चों के साथ आए। उन्हें यहां अकबर के दरबार में नौकरी मिल गई। बाद में मुमताज के पिता असफ खान जहांगीर के वकील बने और बुआ नूरजहां ने जहांगीर से विवाह किया। बाद में असफ खान, शाहजहां के वजीर भी बने।

मुमताज के अलावा भी शाहजहां ने की दो और शादियां

शाहजहां से मिलने के बाद मुमताज का निकाह होने में पांच साल लग गए। जहांगीर ने सगाई तो 1607 में ही करा दी मगर दरबारी ज्योतिषियों ने शुभ मुहूर्त के लिए पांच साल इंतजार करने के लिए कहा।

इस बीच 1610 में शहजादी कंधारी के साथ शाहजहां की शादी हुई। 1612 में मुमताज से शादी के बाद 1617 में भी शाहजहां की एक और शादी हुई थी। हालांकि दरबार के इतिहासकारों ने इसको राजनीतिक गठबंधन बताया।

दरबार के इतिहासकार इनायत खान ने जब शाहजहांनामा लिखी तो उसमें कहा, ‘दूसरी महिलाओं के लिए शाहजहां ने जो प्रेम दिखाया वो मुमताज के लिए उनके प्यार का एक हजारवां हिस्सा भी नहीं था।’

मुमताज से शादी और शाहजहां की खुशी

शाहजहां और मुमताज की शादी 1612 में हुई। मोइन उल आसार में इस शादी का जिक्र करते हुए लिखा गया है कि जहांगीर ने अपने हाथों से दूल्हे के सेहरे पर मोतियों का हार बांधा और पांच लाख मेहर की रकम तय की। शादी के वक्त मुमताज की उम्र 19 साल थी और शाहजहां की उम्र 20 साल।

शाहजहां और मुमताज की पेटिंग। साभार- यूनिवर्सल इमेज ग्रुप - Dainik Bhaskar
शाहजहां और मुमताज की पेटिंग। साभार- यूनिवर्सल इमेज ग्रुप

जहांगीर ने इस शादी का जिक्र करते हुए जहांगीरनामा में लिखा है-

‘मैंने इत्तिकाद खान की बेटी का हाथ खुर्रम के लिए मांगा था। शादी का जलसा भी हो गया था तो गुरुवार 18 तारीख को मैं इत्तिकाद के घर गया। वहां एक दिन और एक रात ठहरा। खुर्रम (शाहजहां) ने मुझे तोहफे पेश किए। उसने बेगमों को, अपनी मां और सौतेली मांओं को हीरे-जवाहरात दिए। खुर्रम ने हरम में काम करने वाली औरतों को भी हीरे-जवाहरात दिए।’

शाहजहां को सत्ता मिली और मुमताज बन गईं बेगम

साल 1628 में शाहजहां ने गद्दी संभाली। इस खुशी में एक करोड़ अस्सी लाख रुपए और चार लाख बीघा जमीन दान की गई। 38 साल की उम्र में राजा बनते ही शाहजहां ने मुमताज को पादशाह बेगम (महिला शहंशाह) की उपाधि दी।

इसके अलावा मल्लिका-ए-जहां (दुनिया की रानी), मल्लिक- उज-जमा (जमाने की रानी), मल्लिका-ए-हिंद (हिंदुस्तान की रानी) आदि कई उपाधियां दीं। मुमताज को कई ऐसी सुविधाएं दी गईं जो आज तक किसी भी रानी को नहीं दी गई थीं।

हाथीदांत पर सोने की पत्ती के साथ बनाई गई यह पेंटिग साल 1860 में बनी थी। इसमें मुमताज अपनी सहायिका के साथ दिखाई गई हैं। 

शाहजहां मुमताज को कितना मानते थे इस बात का पता इसी से चलता है कि दूसरी बेगम को सालाना छह लाख रुपए ही देना तय हुआ। शाहजहां ने खुशी में मुमताज को दो लाख अशर्फियों का इनाम भी दिया। साथ ही सालाना 10 लाख रुपए देने की घोषणा की। ये पैसे आज के 50 करोड़ रुपए जितने हैं।


मुमताज और शाहजहां 19 साल तक साथ रहे। 1628 में शहजहां के गद्दी पर बैठने के चार साल के भीतर ही मुमताज का असमय निधन हो गया। 19 सालों में उनके 14 बच्चे हुए। इनमें आठ बेटे और छह बेटियां थीं। सात की मौत जन्म के समय या कुछ साल बाद हो गई। बाकी बच्चों में दाराशिकोह, औरंगजेब और जहां आरा का नाम इतिहास में दर्ज हुआ।


जंग में भी मुमताज का साथ नहीं छोड़ पाते थे शाहजहां


मुमताज अकसर शाहजहां के साथ जंग वाले इलाकों तक जाती रहीं। यहां तक कि मुमताज के पिता ने जब बगावत की तो मुमताज शाहजहां के साथ दौरे करती रहीं। इसी तरह दक्कन की तरफ से हो रही बगावत का सामना करने शाहजहां के साथ मुमताज भी गईं। वो गर्भवती थीं और अचानक उन्हें प्रसव पीड़ा होने लगी।

इस तस्वीर में शाहजहाँ अपनी बीमार बेगम मुमताज महल को गोद में लिए हुए हैं।

तीस घंटे लगातार प्रसव पीड़ा के बाद 17 जून 1631 को दक्कन के इलाके (अब मध्यप्रदेश के बुरहानपुर) में अधिक खून बहने से मुमताज की मौत हो गई। उस वक्त शाहजहां वहां मौजूद नहीं थे। मुमताज को अस्थायी तौर पर बुरहानपुर के एक बागीचे में दफना दिया गया।


शाहजहां ने दो साल के शोक का ऐलान किया और खुद एक कमरे में बंद हो गए। शाहजहां पूरे सप्ताह कमरे में बंद रहे। कहा जाता है कि वो आगे दो सालों तक बुधवार को सफेद कपड़े पहनते थे।


शाहजहां के राजा बनने के पहले ही मुमताज ने उनसे कुछ वादे ले लिए थे। ताजमहल बनवाना उनमें से एक था। शाहजहां से मुमताज ने यह भी वादा लिया कि हर साल बरसी पर वो मकबरे पर जाएंगे।


मुमताज का आखिरी वादा शाहजहां पूरा नहीं कर सके। औरंगजेब ने सत्ता पाने के लिए उन्हें कैद कर दिया जहां से वो बाकी का जीवन एक खिड़की से ताजमहल देखते हुए बिताते रहे।


तीसरी बार ताजमहल में दफनाई गईं मुमताज


मुमताज को पहली बार आनन-फानन मे बुरहानपुर में तापी नदी के किनारे दफनाया गया। वहां से तकरीबन छह महीने बाद उनके शव को आगरा लाया गया और जनवरी 1632 में यमुना किनारे दफनाया गया। यहां शाहजहां ने मकबरा बनवाया और इसी जगह को ताजमहल कहा जाने लगा। बाद में जब ताजमहल बन गया तो मुमताज की कब्र वहीं बनाई गई।

बुरहानपुर जहां मुमताज महल को पहली बार दफनाया गया। यहां से दिसंबर 1631 में मुमताज के शव को उनके बेटे शाह शुजा, उनके डॉक्टर और उनकी दासी के साथ आगरा लाया गया।

अब किस्सा ताजमल के बनने का…


शाहजहां के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी कि ताजमहल बनेगा कहां? बहुत जद्दोजहद के बाद शाहजहां ने तय किया कि वो जगह शांत और शहर से दूर होगी। वहां से किला दिखेगा और यमुना बगल से गुजरेगी ताकि पौधों को पानी वगैरह समय पर मिलता रहे। अंत में शाहजहां ने किले से 1.5 मील दूर जगह चुनी।

ताजमहल के आस पास क्या है, इस ग्राफिक्स में समझा जा सकता है।

इसे साल 1632 में बनाना शुरू किया गया और लगभग 20 साल बाद यह साल 1653 में बनकर तैयार हुआ। 42 एकड़ की जमीन चुन कर इसकी मीनारों का स्ट्रक्चर तय किया गया और इसे बनाने के लिए दुनिया भर से 20 हजार मजदूर बुलाए गए।


कन्नौज के मजदूरों ने बनाया ताजमहल, कश्मीर से आए बाग बनाने वाले


जिस साल ताजमहल बन रहा था उसी समय पीटर मंडी नाम के एक ट्रैवलर भारत आए। अपने यात्रा वृतांत में उन्होंने ताजमहल के बनने का जिक्र करते हुए लिखा है कि उस इलाके को साफ कर जमीन समतल कराई गई। हजारों मजदूरों ने दिन रात काम करके गहरी नींव खोदी और ध्यान रखा कि यमुना का पानी इस तरफ न आए। इसके बाद 970 फीट लंबा और 364 फीट चौड़ा चबूतरा बना जिस पर मकबरा बनाया गया।


इसमें लगे संगमरमर मकराना से मंगाए गए। संगमरमरों के लिए विशेष गाड़ी बनाई गई जिसे 25-30 मवेशी खींचते थे। बैलों और लंबे सींग वाले भैसों के सहारे उन्हें 200 मील दूर आगरा लाया गया।


शाहजहां की जीवनी में फर्गुस निकोल ने लिखा है कि इसे बनाने वाले अधिकतर मजदूर कन्नौज के थे। नक्काशी करने वाले पोखरा से और बाग बनाने की जिम्मेदारी कश्मीर के मजदूरों के हाथ थी।


ताजमहल के देख-रेख का खर्च आस पास के गांवों के जिम्मे


ताजमहल में 40 तरह के रत्न लगाए गए। नीले पत्थर अफगानिस्तान से, हरे रंग के पत्थर चीन से और फिरोजा तिब्बत से मंगाए गए थे। यहां तक कि लहसुनिया पत्थरों को मिस्र के नील घाटी से मंगाया गया था।

ताजमहल के भीतर लगे लाल पत्थर। नीलम के पत्थरों को अशुभ कह कर बहुत कम यूज किया गया।


इसे बनाने में उस समय के हिसाब से 4 करोड़ रुपए खर्च किए गए। इतिहासकार अब्दुल हमीद लाहौरी ने मजदूरों को दिए गए मेहनताने और यात्रा खर्च का जिक्र करते हुए लिखा है कि 50 लाख रुपए खर्च हुए। उसमें लगने वाले रत्नों और अन्य खर्चों को मिला देने पर यह राशि चार करोड़ के आसपास होती है। ये आज के तकरीबन 50 अरब रुपयों के बराबर होगी।


ताजमहल के बनने में खर्च हुआ सारा पैसा आगरा प्रांत के सरकारी खजाने से चुकाया गया। आगरा के आस पास के तीस गांव से मिलने वाली मालगुजारी का इस्तेमाल रखरखाव में करने का आदेश हुआ।


ताजमहल निहारते हुए दुनिया को अलविदा कह गए शाहजहां


ताजमहल बनने के पांच साल के भीतर ही गद्दी को लेकर जंग छिड़ी रही और 1659 में औरंगजेब ने अपने पिता को गद्दी से उतार दिया। उन्हें किले में नजरबंद कर दिया गया। अपने कमरे की खिड़की से वो हर वक्त चांद देखते रहते और फिर लगभग सात साल बाद जनवरी 1666 में शाहजहां ने ताजमहल देखते-देखते दुनिया को अलविदा कह दिया। शाहजहां को भी मुमताज की कब्र के बगल में ताजमहल के भीतर ही दफना दिया गया।

मुमताज और शाहजहां की कब्र। 



मंगलवार, जून 13, 2023

कुछ लड़के होते हैं

कुछ लड़के होते है
इतवार जैसे सुकून से भरे हुए
जिनके काँधे पर सर रख कर आप
हाले दिल कह सकते हो,

कुछ होते है उस सोमवार की तरह
जो भागमभाग वाली जिंदगी में
कुछ कर गुजरने के जुनून में रहते है
जिन्हें अपनी पीठ पर चाहिए होता है आपका हाथ 
ताकि वो महसूस कर सके
कि इस जंग में वो अकेले नही है,

कुछ होते है वो
जो बाहर जाने से पहले
आपकी ड्रेस पसंद करते है
जो आपको बताते है कि
कौन सी लिपस्टिक तुम पर अच्छी लगती है,

जो तुम्हारी हाई हील को देख कर कहते है
" पहन लो ना, मैं सम्भाल लूंगा तुम्हें "

जो बेहद प्यार आने पर
तुम्हारे होठों की बजाय
तुम्हारे माथे को चूमते है,

जो चाहते है तुम्हारे साथ कुछ तन्हा वक़्त
तुम्हारे बदन को चूमने को नही
तुम्हारी आंखे पढ़ने को,

जो तुम्हारे दूर जाने पर
आँखों में आ रहे आँसू को पोंछ लेते है
किसी के देखने से पहले,

वो लड़के जो तोड़ देते है शर्ट का बटन
ताकि तुम टांकने के बहाने
उसके ज़रा सा करीब आ सको ,

वो लड़के
जो लड़ जाते है तुम्हारे लिए दुनिया से,
हर लड़का बलात्कारी नही होता
कुछ होते है सुनसान और अँधेरी राहों पर
जगमगाते आशियाने की तरह।

रविवार, अप्रैल 23, 2023

बस कहानी रह गई


बस कहानी रह गई.....

तब हमारे गाँव में कॉलेज नही था l इस कारण मैं पढ़ने के लिए में शहर आया था । यह किसी रिश्तेदार का एक कमरे का मकान था। बिना किराए का था। आस-पास सब गरीब लोगो के घर थे। और में अकेला था, सब काम मुझे खुद ही करने पड़ते थे। खाना-बनाना, कपड़े धोना, घर की साफ़-सफाई करना।

कुछ दिन बाद एक गरीब लडकी अपने छोटे भाई के साथ मेरे घर पर आई। आते ही सवाल किया "तुम मेरे भाई को ट्यूशन दे सकते हो क्या ?"

मेंने कुछ देर सोचा फिर कहा "नही"

उसने कहा "क्यूँ?

मैंने कहा "टाइम नही है। मेरी पढ़ाई डिस्टर्ब होगी।"

उसने कहा "बदले में मैं तुम्हारा खाना बना दूँगी।"

शायद उसे पता था की मैं खाना खुद पकाता हूं l

मैंने कोई जवाब नही दिया तो वह और लालच दे कर बोली, बर्तन भी साफ़ कर दूंगी।"

अब मुझे भी लालच आ ही गया, मैंने कहा-"कपड़े भी धो दो तो पढ़ा दूँगा।"

वो मान गई।

इस तरह से उसका रोज घर में आना-जाना होने लगा।

वो काम करती रहती और मैं उसके भाई को पढ़ाता रहाता। ज्यादा बात नही होती।

उसका भाई आठवीं कक्षा में था। खूब होशियार था। इस कारण ज्यादा माथा-पच्ची नहीं करनी पड़ती थी।

कभी-कभी वह घर की सफाई भी कर दिया करती थी।

दिन गुजरने लगे। एक रोज शाम को वो मेरे घर आई तो उसके हाथ में एक बड़ी सी कुल्फी थी।

मुझे दी तो मैंने पूछ लिया, कहाँ से लाई हो ?

उसने कहा "घर से, आज बरसात हो गई तो कुल्फियां नहीं बिकी।"

इतना कह कर वह उदास हो गई।

मैंने फिर कहा:-" मग़र तुम्हारे पापा तो समोसे-कचोरी का ठेला लगाते हैं ?

उसने कहा- वो सर्दियों में समोसे-कचोरी और गर्मियों में कुल्फी।

और आज बरसात हो गई, तो कुल्फी नही बिकी l मतलब ठण्ड के कारण लोग कुल्फी नही खाते।

"ओह" मैंने गहरी साँस छोड़ी।

मैंने आज उसे गौर से देखा था। गम्भीर मुद्रा में वो उम्र से बडी लगी। समझदार भी, मासूम भी।

धीरे-धीरे वक़्त गुजरने लगा। मैं कभी-कभार उसके घर भी जाने लगा। विशेषतौर पर किसी त्यौहार या उत्सव पर। कई बार उससे नजरें मिलती तो मिली ही रह जाती। पता नही क्यूँ ?

ऐसे ही समय बीतता गया इस बीच कुछ बातें मैंने उसकी भी जान ली। कि वो बूंदी बाँधने का काम करती है। बूंदी मतलब किसी ओढ़नी या चुनरी पर धागे से गोल-गोल बिंदु बनाना। बिंदु बनाने के बाद चुनरी की रंगाई करने पर डिजाइन तैयार हो जाती है। 

मैंने बूंदी बाँधने का काम करते उसे बहुत बार देखा था। एक दिन मैंने उसे पूछ लिया "ये काम तुम क्यूँ करती हो?"

वह बोली:-"पैसे मिलते हैं।"

"क्या करोगी पैसों का?"

"इकठ्ठे करती हूँ।"

"कितने हो गए?"

"यही कोई छः-सात हजार।"

"मुझे हजार रुपये उधार चाहिए। जल्दी लौटा दूंगा।" मैंने मांग लिए।

उसने सवाल किया:-"किस लिए चाहिए?"

"कारण पूछोगी तो रहने दो।" मैंने मायूसी के साथ कहा।

वो बोली अरे मैंने तो "ऐसे ही पूछ लिया। तुम माँगो तो सारे दे दूँ।" उसकी ये आवाज़ अलग सी जान पड़ी। मग़र मैं उस वक़्त कुछ समझ नही पाया। पैसे मिल रहे थे उन्हीं में खोकर रह गया। एक दोस्त से उधार लिए थे । कमबख्त दो - तीन बार माँग चुका था।

एक रोज मेरी जेब में गुलाब की टूटी पंखुड़ियाँ निकली। मग़र तब भी मैं यही सोच कर रह गया कि कॉलेज के किसी दोस्त ने चुपके से डाल दी होगी। उस समय इतनी समझ भी नही थी। 

एक दिन कॉलेज की मेरी एक दोस्त मेरे घर आई कुछ नोट्स लेने। मैंने दे दिए।

और वो मेरे घर के बाहर खडी थी और मेरी दोस्त को देखकर बाहर से ही तुरंत वापिस घर चली गई। और फ़िर दूसरे दिन दोपहर में ही आ धमकी। 

आते ही कहा "मैं कल से तुम्हारा कोई काम नही करूंगी।"

मैने कहा "क्यूँ?

काफी देर तो उसने जवाब नही दिया। फिर धोने के लिए मेरे बिखरे कपड़े समेटने लगी।

मैने कहा "कहीं जा रही हो?"

उसने कहा "नही। बस काम नही करूंगी।

और मेरे भाई को भी मत पढ़ाना कल से।"

मैने कहा अरे "तुम्हारे हजार रूपये कल दे दूंगा। कल घर से पैसे आ रहे हैं।" मुझे पैसे को लेकर शंका हुई थी। इस कारण पक्का आश्वासन दे दिया।

उसने कहो "पैसे नही चाहिए मुझे।"

मैने कहा "तो फिर ?"

मैने आँखे उसके चेहरे पर रखी और उसने एक बार मुझसे नज़र मिलाई तो लगा हजारों प्रश्न है, उसकी आँखों में। मग़र मेरी समझ से बाहर थे।

उसने कोई जवाब नही दिया। मेरे कपड़े लेकर चली गई। अपने घर से ही घोकर लाया करती थी।

दूसरे दिन वह नही आई। न उसका भाई आया।

मैंने जैसे-तैसे खाना बनाया। फिर खाकर कॉलेज चला गया। दोपहर को आया तो सीधा उसके घर चला गया। यह सोचकर की कारण तो जान लू, काम नही करने का।

उसके घर पहुंचा तो पता चला की वो बीमार है। एक छप्पर में चारपाई पर लेटी थी अकेली। घर में उसकी मम्मी थी जो काम में लगी थी।

मैं उसके पास पहुंचा तो उसने मुँह फेर लिया करवट लेकर।

मैंने पूछा:-" दवाई ली क्या?"

"नही।" छोटा सा जवाब दिया बिना मेरी तरफ देखे।

मैने कहा "क्यों नही ली?

उसने कहा "मेरी मर्ज़ी। तुम्हें क्या?

"मुझसे नाराज़ क्यूँ हो ये तो बता दो।"

"तुम सब समझते जवाब दिया बिना मेरी तरफ देखे।

मैने कहा "क्यों नही ली?

उसने कहा "मेरी मर्ज़ी। तुम्हें क्या?

"मुझसे नाराज़ क्यूँ हो ये तो बता दो।"

"तुम सब समझते हो, फिर मैं क्यूँ बताऊँ।"

"कुछ नही पता। तुम्हारी कसम। सुबह से परेशान हूँ। बता दो।"

" नही बताउंगी। जाओ यहाँ से।" इस बार आवाज़ रोने की थी।

मुझे जरा घबराहट सी हुई। डरते-डरते उसके हाथ को छूकर देखा तो मैं उछल कर रह गया। बहुत गर्म था।

मैंने उसकी मम्मी को पास बुलाकर बताया। फिर हम दोनों उसे हॉस्पिटल ले गए।

डॉक्टर ने दवा दी और एडमिट कर लिया। कुछ जाँच वगैरह होनी थी।

क्यूंकि शहर में एक दो डेंगू के मामले आ चुके थे।

मुझे अब चिंता सी होने लगी थी।

उसकी माँ घर चली गई। उसके पापा को बुलाने।

मैं उसके पास अकेला था।

बुखार जरा कम हो गया था। वह गुमसुम सी लेटी थी। दीवार को घूर रही थी एकटक!!

मैंने उसके चैहरे को सहलाया तो उसकी आँखों में आँसू आ गए और मेरे भी।

मैंने भरे गले से पूछा:- "बताओगी नही?"

उसने आँखों में आँसू लिए मुस्कराकर कहा:-" अब बताने की जरूरत नही है। पता चल गया है कि तुम्हें मेरी परवाह है। है ना?"

मेरे होठों से अपने आप ही एक अल्फ़ाज़ निकला "बहुत"

उसने कहा "बस! अब मैं मर भी जाऊँ तो कोई गिला नही।" उसने मेरे हाथ को कस कर दबाते हुए कहा।

उसके इस वाक्य का कोई जवाब मेरे लबों से नही निकला। मग़र आँखे थी जो जवाब को संभाल न सकी। बरस पड़ी।

वह उठ कर बैठ गई और बोली रोता क्यूँ है पागल?

मैने जिस दिन पहली बार तुम्हारे लिए रोटी बनाई थी, उसी दिन से चाहती हूँ तुम्हें। एक तुम थे पागल । कुछ समझने में इतना वक़्त ले गये।"

फिर उसने अपने साथ मेरे आँसू भी पोछे। फिर थोडी देर बाद उसके घर वाले आ गए।

रात हो गई थी। उसकी हालत में कोई सुधार नही हुआ।

फिर देर रात तक उसकी बीमारी की रिपोर्ट आ गई। बताया गया की उसे डेंगू है।

और ये जान कर आग सी लग गई मेरे सीने में।

खून की कमी हो गई थी उसे।

पर भगवान का शुक्र है कि मेरा खून मैच हो गया था।

दो बोतल खून दिया मैंने, तो जरा सुकून सा मिला दिल को।

उस रात वह अचेत सी रही।

बार-बार अचेत अवस्था में उल्टियाँ कर देती थी।

मैं एक मिनट भी नही सोया उस रात।

डॉक्टरों ने दूसरे दिन बताया कि रक्त में प्लेटलेट्स की संख्या तेजी से कम हो रही है। खून और देना होगा। डेंगू का वायरस खून का थक्का बनाने वाली प्लेटलेट्स पर हमला करता हैं । अगर प्लेटलेट्स खत्म तो पुरे शरीर के अंदरुनी अंगों से ख़ून का रिसाव शुरू हो जाता है। फिर बचने का कोई चांस नही।

मैंने अपना और खून देने का आग्रह किया l मग़र रात को दिया था इस कारण डाक्टर ने मना कर दिया ।

फिर मैंने मेरे कॉलेज के दो-चार दोस्तों को बुलाया। साले दस एक साथ आ गए। खून दिया। हिम्मत बंधाई। पैसों की जरूरत हो तो देने का आश्वासन दिया और चले गए।

उस वक़्त पता चला दोस्त होना भी कितना जरूरी है। पैसों की कमी नही थी। घर से आ गए थे।

दूसरे दिन की रात को वो कुछ ठीक दिखी। बातें भी करने लगी।

रात को सब सोए थे। मैं उसके पास बैठा जाग रहा था।

उसने मुझसे कहा "पागल बीमार मैं हूँ तुम नही। फिर ऐसी हालत क्यों बना ली है तुमने?"

मैंने कहा "तुम ठीक हो जा। मैं तो नहाते ही ठीक हो जाऊंगा।"

उसने उदास होकर पूछा "एक बात बताओ ?"

मैने कहा "क्या ?"

उसने कहा "मैंने एक दिन तुम्हारी जेब में गुलाब डाला था तुम्हें मिला ?

मैने कहा "हां" सिर्फ पंखुड़ियाँ मिली थी I 

उसने कहा "कुछ समझे थे?"

"नही"

"क्यूँ?"

"सोचा था कॉलेज के किसी दोस्त ने मज़ाक किया होगा"

"और वो रोटियाँ?"

"कौन सी?"

"दिल के आकार वाली।"

"अब समझ में आ रहा है।"

"बुद्दू हो"

"हाँ"

फिर वह हँसी। काफी देर तक। निश्छल मासूम हंसी।

"कल सोए थे क्या?"

"नही।"

"अब सो जाओ। मैं ठीक हूँ मुझे कुछ न होगा।"

सचमुच नींद आ रही थीं।

मग़र मैं सोया नही।

मग़र वह सो गई।

फिर घंटे भर बाद वापस जाग गई।

मैं ऊंघ रहा था।

"सुनो।"

"हाँ। मैं नींद में ही बोला।

"ये बताओ ये बीमारी छूने से किसी को लग सकती है क्या?"

"नही, सिर्फ एडीज मच्छर के काटने से लगती है।"

"इधर आओ।"

मैं उसके करीब आ गया।

"एक बार गले लग जाओ। अगर मर गई तो ये आरज़ू बाकी न रह जाए।"

"ऐसा ना कहो प्लीज।" मैं इतना ही कह पाया।

फिर वो मुझसे काफी देर तक लिपटी रही और सो गई।

फिर उसे ढंग से लिटाकर मैं भी एक खाली बेड पर सो गया।

सुबह मैं तो उठ गया लेकिन..
....….…वह सदा के लिए सो गई।


शुक्रवार, मार्च 31, 2023

दुश्मन होता रण में

दुश्मन होता रण में
मैं बांध कफ़न लड़ लेता
होता कितना भी बलवान
आत्म बल उसको दफ़न कर देता।

लेकिन ये कैसा दुश्मन
जिसने सबको ललकारा है
भितरघाती कुटिल ये कितना
सर्प भांति फुफकारा है

हर वीर पराजित होता है
लेकिन रणभूमि का शौभाग्य नहीं
शूरवीर अंतिम साँसों तक लड़ता
लेकिन शहीद का मान नहीं।
हर शास्त्र शस्त्र निपुड़ है योद्धा
फिर भी कोई अनुमान नहीं।।

रण छोड़ चुकी है रणभूमि अब
घर को ही है युद्धभूमि का मान
लड़ निशस्त्र होकर अंधियारे से सब
मिलेगा योद्धाओं सा सम्मान

घर बैठे इस युद्ध को जीता जायेगा
जिंदा रह के भी तू अमर हो जायेगा
कर्मयुद्ध के धर्म का अर्जुन तू कहलायेगा
बिन हथियारों के अदृश्य युद्ध का प्रकाश पुंज बन जायेगा


गुरुवार, मार्च 30, 2023

आज सड़कों पर

आज सड़कों पर लिखे हैं सैकड़ों नारे न देख,
 पर अन्धेरा देख तू आकाश के तारे न देख

एक दरिया है यहाँ पर दूर तक फैला हुआ, 
आज अपने बाज़ुओं को देख पतवारें न देख ।

अब यकीनन ठोस है धरती हक़ीक़त की तरह, 
यह हक़ीक़त देख लेकिन ख़ौफ़ के मारे न देख ।

वे सहारे भी नहीं अब जंग लड़नी है तुझे, 
कट चुके जो हाथ उन हाथों तलवारें न देख |

धुन्धका है नज़र का तू महज़ मायूस है, 
रोजनों को देख दीवारों में दीवारें न देख ।

राख़ कितनी राख़ है, चारों तरफ बिख़री हुई, 
राख़ में चिनगारियाँ ही देख अंगारे न देख |


शनिवार, मार्च 11, 2023

आशुफ्ता ई दिल


अब्र बनकर बसर अश्क बरसा रहा है। 
दिल का मुहाफिज ही आज दिल तोड़के जा रहा है।

बह रहा है लहू मेरे अरमानों का, 
हर ख़्वाब अब्सार का टूटकर बिखरता जा रहा है।

आशुफ्ता हैं दिल की सारी ख्वाहिशें,
 वो मेरी हर ख्वाहिश को मिटाके जा रहा है।

गम अंदोज हैं दिल से लेके रूह तक, 
वो मेरी मोहब्बत की बस्ती को कुछ यूं जलाके जा रहा है।

रुख मोड़ लिया है सब खुशियों ने मुझसे, 
वो सारे गमों से मेरा ताल्लुक जोड़के जा रहा है।

कभी कसमें खाता था वो सदा साथ निभाने की, 
आज वो मेरी हयात की नाउ को मझधार में डुबोके जा रहा है।

न जाने कब से था उसके दिल में कोई मस्तूर,
 आज वो उसी की बांहों में सिमटने जा रहा है।

मुझे करके बदनाम करके खुद तमाम अस्काम,
 वो बेवज़ह मुझे मौत की सजा देके जा रहा है। 


शुक्रवार, फ़रवरी 24, 2023

जिंदगी दुल्हन है एक रात की



































जिंदगी दुल्हन है एक रात की 
कोई नही है मंजिल जिसके अहिवात की 

मांग भरी शाम को बहारो ने , 
सेज सजी रात चांद तारो ने 

भोर हुई मेहंदी छुटी हाथ की 
जिंदगी दुल्हन है एक रात की

नईहर है दूर पता पिया का ना गांव 
कही ना पड़ाव कोई कही नहीं छांव 

जाए किधर डोली बारात की 
जिंदगी दुल्हन है एक रात की 

बिना तेल बाती जले उम्र का दीया
बीच धार छोड़ गया निर्दयी पिया 

आंख बनी बदली बरसात की 
जिन्दगि दुल्हन है एक रात की 



श्रीमंत डब्यातील गरीब माणसे.......

  श्रीमंत डब्यातील गरीब माणसे....... AC च्या डब्यातील भाजणारे वास्तव............ आयुष्यात पहिल्यांदा AC ने प्रवास केला. डब्यात सेवेसाठी नेमल...